- आचार्य परशुराम राय
(यह रचना आर्डनैन्स फैक्टरी प्रोजेक्ट, मेदक (आन्ध्र प्रदेश) की वार्षिक गृह पत्रिका 'सारथ' वर्ष 2000 से आभार सहित यहाँ दी जा रही है।)
मनुष्य की समस्याएँ ही उसे अपने समाधान का रास्ता बताती हैं। यह कहावत प्रत्येक क्षेत्र में चरितार्थ होती है। चिकित्सा का क्षेत्र भी इसका अपवाद नहीं है। अब मानव जाति जबकि 21वीं शताब्दी में कदम रखने जा रही है, उसके पास अनेक चिकित्सा पद्धतियाँ हैं। इसमें दो राय नहीं कि हर चिकित्सा पद्धति की अपनी सीमा है, भले ही तुलनात्मक दृष्टि से उनके गुणात्मक प्रभाव कम या अधिक हों। इन चिकित्सा पद्धतियों का विकास विभिन्न भौगोलिक एवं सामाजिक परिस्थितियों में हुआ है। कुछ चिकित्सा पद्धतियाँ अपनी प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों की कमियों को पूरा करने के लिए अस्तित्व में आयीं। इनमें होम्योपैथी एवं बाक फ्लावर चिकित्सा पद्धतियाँ उल्लेखनीय हैं। चूँकि इस रचना का उद्देश्य बाक फ्लावर चिकित्सा पद्धति पर चर्चा करना है, इसलिए अन्य चिकित्सा पद्धतियों को छोड़ रहा हूँ।
इस चिकित्सा पद्धति पर चर्चा करने के पहले इसके अन्वेषक के विषय में जानकारी देना उचित होगा। इस चिकित्सा पद्धति की खोज डॉ एडवर्ड बाक ने की। डाँ. बाक ने यूनिवर्सिटी कालेज हास्पिटल, लंदन से एम.बी.बी.एस., एम.आर.सी.एम., एल.आर.सी.पी. की डिग्रियाँ प्राप्त कीं। पहले उक्त संस्थान में ये आपात चिकित्साधिकारी रहे, तत्पश्चात् जीवाणु विज्ञानी। इसके बाद इन्होंने होम्योपैथी का अध्ययन और प्रैक्टिस शुरू किया। समान लक्षण वाली औषधि चुनने की कठिनाई के कारण उन्हें यह चिकित्सा पद्धति भी बहुत दिनों तक रास न आयी और वे इससे विरक्त हो गए। उनके मन में यह बात उठी कि आखिर ईश्वर हम लोगों को इतना प्यार करता है, फिर वह हमें इतनी बीमारियाँ क्यों देता है। उन्होंने सोचा कि यदि प्रकृति सदा पूर्णता की ओर गतिशील रहती है तो उसके साम्राज्य में कुछ चिकित्सा के ऐसे साधन अवश्य होने चाहिए जो सरल और साथ ही असरदार भी हों। इतना सरल कि रोगी बिना विस्तृत चिकित्सा विज्ञान की जानकारी के भी स्वयं अपने लिए दवा ढूँढ सके। इसी सोच के लिए डाँ एडवर्ड बाक 1930 में प्रकृति के साम्राज्य में सरल चिकित्सा पद्धति की खोज में निकल पड़े। वे छ: वर्षों तक इंगलैण्ड के जंगलों में भटकते रहे। अन्त में 1936 में उनकी भटकन समाप्त हुई और जंगल मंथन के बाद अमृत के रूप में 38 पुष्प औषधियों को लेकर बाहर आए। ये औषधियाँ उनकी सोच की कसौटी पर खरी उतरीं। अर्थात् न तो इसमें होमियोपैथी की समान लक्षण वाली औषधियों के चुनाव की जटिलता है और न ही एलौपैथिक चिकित्सा पद्धति की पैथालाजिक जाँच-पड़ताल की जरूरत और न ही आयुर्वेद के नाड़ी ज्ञान की। ये दवाएँ रोगी के मानसिक लक्षणों के आधार पर दी जाती हैं। इन दवाओं के प्रयोग के लिए बीमारी कोई मायने नहीं रखती। केवल उसके मानसिक लक्षण ही काम के हैं। जैसे, एक कैंसर के रोगी का मानसिक लक्षण एग्रीमोनी का है तो उसे एग्रीमोनी दी जाएगी, यदि आस्पेन का है तो आस्पेन। कभी-कभी आवश्यकता पड़ने पर रोगी की मानसिक अवस्था एवं रोग के प्रति मानसिक प्रतिक्रिया तथा रोगी की प्रकृति के आधार पर दो-दो या तीन-तीन दवाएँ एक साथ दी जा सकती हैं यदि गलती से कोई अनपेक्षित दवा रोगी को दे दी जाए तो उसका उसके शरीर पर कोई गलत प्रभाव नहीं पड़ता है। इसके अतिरिक्त इन दवाओं का प्रयोग अन्य चिकित्सा पद्धति की दवाओं के साथ भी बेहिचक किया जा सकता है। ये न तो दूसरी दवाओं के कार्य में दखल देती हैं और न ही अन्य दवाएँ इनकी क्रिया को प्रभावित करती हैं। बाक फ्लावर दवाओं का प्रभाव रोगी पर बड़े असरदार ढंग से जल्दी होता है। ये होमियोपैथिक दवाओं की तरह रोग को बढ़ाती भी नहीं। ये दवाएँ बच्चे, बूढ़े, स्त्री, पुरूष हर प्रकार के लोगों को प्रत्येक अवस्था में दी जा सकती हैं। यदि दवा का चुनाव रोगी के मानसिक लक्षणों के अनुरूप किया जाए तो कभी निराश नहीं होना पड़ेगा।
वैसे 'बाक फ्लावर रेमिडिज' चिकित्सा पद्धति अधिक प्रचलित नहीं है और बहुत कम लोग इस चिकित्सा पद्धति से परिचित हैं। भारत में अभी तक इन दवाओं को ड्रग ऐक्ट के अन्तर्गत शामिल नहीं किया गया है। लेकिन इससे इन दवाओं की गुणवत्ता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
इनमें से कुछ दवाओं के विषय में अपने कुछ अनुभव बताना चाहूँगा। आर्डनेंस फैक्टरी मेदक, आं.प्र. के एक कर्मचारी पर इसका प्रयोग करने का मौका मिला। उसे पित्ती निकलती थी। काफी चिकित्सा कराने के बाद भी जब उसे इस रोग से मुक्ति न मिली तो वह मेरे पास इसके लिए होमियोपैथिक दवाओं के बारे में सलाह लेने आया था। लक्षण के अनुसार उसे होमियोपैथिक दवा दी गयी। इससे पित्तियों का निकलना कम तो हो गया लेकिन उसकी मानसिक परेशानी, जो पहले से ही थी, बढ़ गयी। मानसिक लक्षण के अधार पर उसे 'हनीसकुल' (फ्लावर रेमिडी) दी गयी और 15 दिनों में वह मानसिक परेशानी से मुक्त हो गया। जब अन्तिम बार मुझसे मिला तो देखा कि उसका हमेशा बुझा रहने वाला चेहरा काफी प्रफुल्लित था।
जब मैं 'एग्रीमोनी' (फ्लावर रेमिडी) के बारे में पढ़ रहा था तो अपने एक अधिकारी मित्र का नाम तुरन्त मेरे मन में आया। मैंने उन्हें उक्त औषधि के लक्षणों के बारे में बताया। वे खुद भी उन लक्षणों की परीक्षा करके मेरे निर्णय से सहमत हो गये। उन्हें उच्च रक्त चाप (हाई ब्लड प्रेसर) एवं उससे उत्पन्न सिर दर्द तथा अनिद्रा की शिकायत थी। ब्लड प्रेशर की दवा लेने के बाद भी उनका रक्त चाप 140/110 से 130/90 के बीच रहता था। सिर दर्द के लिए डिस्पिरिन एवं नींद के लिए कम्पोज उन्हें लगभग रोज लेना पड़ता था। इसके अतिरिक्त, मानसिक तनाव आदि रहता था। एक हफ्ते तक एग्रीमोनी लेने के बाद उनसे मिला और पूछा कि वे कैसा अनुभव कर रहे हैं। उनकी पहली प्रतिक्रिया उन्हीं के शब्दों में क्षमा-याचना के साथ दे रहा हूँ - 'बहुत अच्छा है। दो-तीन दिनों से बच्चों को पीटा नहीं।' इसके बाद उन्होंने बताया कि बिना कम्पोज के अच्छी नींद आ रही है। सिरदर्द भूल चुके हैं। मन सदा प्रसन्न रहता है। क्रोध बिल्कुल आना बंद हो गया। उस दिन उनका रक्तचाप 120/80 था।
इसके अतिरिक्त इन औषधियों के कई अनुभव किए। विस्तार के भय से उनका यहाँ उल्लेख नहीं कर रहा हूँ।
डॉ बाक द्वारा आविष्कृत फ्लावर रेमिडिज के नाम नीचे दिए जा रहे है:
एग्रीमोनी, आस्पेन, बीच, सेन्टौरी, सिराटो, चेरी प्लस, चेस्टनट बड, चिकोरी, क्लेमाटिस, क्रैब एपल, एल्म, जेन्शियन, गॉर्स, हीदर, होल्ली, हनीसकुल, हार्नबीम, इम्पेशेंस, लार्च, मिम्युलस, मस्टर्ड, ओक, ओलिव, पाइन, रेड चेस्टनट, राक रोज, राक वाटर, स्क्लेरान्थस, स्टार आफ बेथलहम, स्वीट चेस्टनेट, वरवेन, वाइन, वालनट, वाटर वायलेट, व्हाइट चेस्टनट, वाइल्ड ओट, वाइल्ड रोज और विल्लो।
अगले अंक में प्रथम नौ औषधियों के संक्षिप्त विवरण दिए जाएँगे।
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Thanks Aacharya ji for this contribution on "The Fire"
ReplyDelete.
ReplyDeleteपरशुराम जी ,
ये जानकारी मेरे लिए सर्वथा नई है । आपका आभार ।
आगामी लेखों का इंतज़ार रहेगा ।
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is lekh ko apne blog par prakaashit karne ke liye sarvpratham main Pratima ji ka hriday se aabhari hun aur utsaahwardhak vichar ke liye Dr.Divya ka. Ek baar punah aap dono ko saadhuwaad.
ReplyDeleteGreat ... awaited for your new post which one related to medicines .
ReplyDeleteमैंने बाक फ्लावर रेमिडी के बारे में कभी सुना ही नहीं था कि ऐसी भी कोई चिकित्सा पद्धति है। मेरे लिए तो यह बिलकुल नई खोज की तरह थी। राय जी से चर्चा के दौरान एक बार यह विषय आया था। मैं चकित था। कुछ दवाएं प्रयोग भी कीं। आज बाक फ्लावर रेमिडी पर आलेख प्रकाशित होते देख सुखद लग रहा है। यह
ReplyDeleteविज्ञान अभी तक काल गर्त में दबा हुआ था। इसे मंच प्रदान कर लोगो के सम्मुख लाने में योगदान के लिए प्रतिमा जी आपका आभारी हूँ। यह लगभग पश्चप्रभाव विहीन विज्ञान लोगो के स्वास्थ्य के काम आए ऐसी कामना है। आशा है आपका ब्लाग ऐसी ही अभिनव प्रस्तुतियों के माध्यम से अपने नाम को सार्थक करेगा।
- हरीश प्रकाश गुप्त
Acharya ji, as Mr. Harish Gupta was not able to post a comment directly on the blog post, he has passed the message via me.
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