Saturday, February 26, 2011

बाक फ्लावर चिकित्सा पद्धति

   अंक – 4
    - आचार्य परशुराम राय 

19.    लार्च (Larch): आत्मविश्वास का अभाव, असफलता से आशंकित, उदासी, हीन भावना। अपने आप पर और अपनी क्षमता पर विश्वास के अभाव के कारण वे कुछ भी करने का प्रयास नहीं करते। इससे उनमें हीन भावना का जन्म होता है और सदा उदास बने रहते हैं। ऐसी मानसिकता वाले रोगियों के लिए लार्च बहुत ही उपयोगी है।
20.          मिम्युलस (Mimulus) :यह औषधि 'आस्पेन' के बिल्कुल विपरीत है। आस्पेन से भय के मूल का पता नहीं होता, जबकि मिम्युलस के भय का मूल ज्ञात रहता है। मिम्युलस के भय का रूप उतना भयानक नहीं होता, जितना 'रॉक रोज' का।
21.       मस्टर्ड (Mustard) :अज्ञात कारण से घोर उदासी। एक ऐसी उदासी, ऐसी निराशा व्यक्ति को घेर ले जिसका कोई स्पष्ट कारण न दिखाई पड़ता हो, तो इस औषधि से रोगी को लाभ होगा। डाँ. बाक कहते हैं कि यह उदासी को दूर भगाती है और जीवन में खुशी लाती है।
22.     ओक (Oak) : उदासी, निराशा, लेकिन प्रयत्न करते रहना। यह दवा 'गॉर्स' के विपरीत है। 'गॉर्स' का रोगी निराश होकर अपने रोगों का इलाज बंद कर देता। लेकिन ओक का रोगी अपने रोग के इलाज से निराश होने के बावजूद एक के बाद दूसरे, तीसरे चिकित्सक से इलाज कराता रहता।
23.   ओलिव (Olive) : पूरी थकान, चरम मानसिक और शारीरिक थकान। यह उन लोगों की औषधि है जो लम्बे समय से चिन्ता और विषम परिस्थिति के शिकार रहे हैं या लम्बी और गम्भीर बीमारी जिनके जीवनी शक्ति को चूस ली है। 'ओलिव' ऐसे रोगियों के लिए है।
24.   पाइन (Pine) : प्राय: अपने पर दोषारोपण करना, आत्म-भर्त्सना करना, अपने को अपराधी/दोषी मानना इस औषधि की प्रकृति है। जिन लोगों में ये प्रवृत्तियाँ पायी जायें, उन्हें पाइन से अवश्य लाभ होगा।
25.   रेड चेस्टनट (Red Chestnut) :सदा दूसरों के लिए चिन्तित एवं भयभीत रहना। इसके सम्बन्ध में डाँ. बाक लिखते हैं कि रेड चेस्टनट का भय दूसरों के लिए विशेषकर अपने प्रियजन के लिए होता है। जब कोई अपना प्रियजन कहीं बाहर जाता है या उसकी खबर नहीं मिलती तो व्यक्ति भयभीत रहता है कि कहीं उसे कुछ हो न जाए। ऐसी स्थिति में रेड चेस्टनट का प्रयोग किया जाता है।

26.   राक रोज (Rock Rose) : आतंक, संत्रास, चरम सीमा पर भय। राक रोज का सेवन तब करना चाहिए जब कोई एक दम आतंकित हो जाए, भले ही उसका स्वास्थ्य अच्छा हो या जब किसी दुर्घटनाग्रस्त होने से आतंक हो तो यह दवा प्रयोग की जाती है। दुर्घटना में बाल-बाल बचने के बाद भी उसका आतंक व्यक्ति पर छाया हो। रोगी के साथ दुर्घटना के कारण यदि आस-पास के लोगों में भी आतंक या भय छाया हो तो उन्हें भी यह दवा देनी चाहिए। इससे वे इस आतं से पूर्णतया मुक्त हो जाएंगे।
27.   राक वाटर (Rock Water) : फ्लावर औषधियों की सूची में यही एक ऐसी औषधि है जो किसी फूल से नहीं, बल्कि रॉक से निकलने वाले पानी से बनी है। यह 'बीच' के ठीक विपरीत है। बीच का रोगी दूसरों को अनुशासित करना चाहता है, जब कि 'राक रोज' का रोगी हमेशा अपने को अनुशासित करता है। अपने उसूलों और आदर्शों के लिए समर्पित रहता है। ऐसे व्यक्तियों की बीमारी में यह औषधि उपयोगी है।
     अगले अंक में शेष ग्यारह औषधियों पर चर्चा की जाएगी।
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Tuesday, February 22, 2011

बाक फ्लावर चिकित्सा पद्धति


अंक - 3
- आचार्य परशुराम राय
10.                         क्रैब एपल (Crab Apple):   अपने प्रति घृणा,उदासी और निराशा। यह औषधि हमारे मन या शरीर का उन रोगों से मुक्त करती है जिनके कारण हम अपने आप से घृणा करते हैं या उस अंग को काट देना चाहते हैंजिसके कारण हमें शारीरिक या मानसिक पीड़ा होती हो। दूसरे शब्दों में रोगी जब दाँत के दर्द से पीड़ित होता है तो वह डॉक्टर से उस दाँत को निकाल देने के लिए कहता है। फोड़े से पीड़ित है तो जल्दी आपरेशन कराकर उस फोड़े से मुक्त होना चाहता है। यदि उसे कोई चर्मरोग हो गया हैजिससे वह लोगों के बीच में अपने को हीन समझता है तथा उसे लोगों से छिपाता है,तो 'क्रैब एपलके प्रयोग से उसे रोग से छुटकारा मिल सकता है।
11.                         एल्म (Elm):  प्राय: अपर्याप्तता का भावउदासी और थकान। यह औषधि उनके लिए हैजो अपने उत्तरदायित्व और कार्य के बोझ से अपने को प्राय: दबा हुआ महसूस करते हैं और अपेक्षित परिणाम न मिलने से उदास हो जाते हैं तथा थकान का अनुभव करते हैं। अत: यह दवा उन लोगों के लिए उपयुक्त है जो काफी सक्षम हैं और ऊॅंचे पदों पर कार्यरत हैंजैसे उद्योगपतिमंत्रीचिकित्सकअध्यापकनर्स आदि।
12.                         जेन्शियन (Gentian) :      उदासीनिराशा,हतोत्साहअनिश्चितता। यह उन लोगों के रोग में लाभदयक है जो कठिनाइयाँ आने पर और मनोनुकूल परिणाम न होने पर जल्दी ही साहस खो दते हैं इसके कारण उनमें उदासी और निराशा घर कर जाती है।
13.                         गॉर्स (Gorse): निराशा। जो लोग अपने रोग का इलाज कराते - कराते थक गए हों और रोग से मुक्त होने की आशा छोड़ चुके होंवे इस औषधि से रोग मुक्त हो सकते हैं।
14.                         हीदर Heather):     आत्म-केन्द्रित होनासदा अपनी चिन्ता करना। यह औषधि एग्रीमीनो के बिल्कुल विपरीत है। एग्रीमोनी का रोगी अपने कष्ट की चर्चा बिल्कुल नहीं करताजबकि हीदर का रोगी हमेशा दूसरों से अपना ही रोना रोता रहता हैचाहे बीमारी होपारिवारिक कष्ट हो या और कोई परेशानी। डाक्टर के पास अपनी बीमारी की छोटी-छोटी बातों को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर विस्तार से वर्णन करता है।
15.                         होल्ली (Holly):      घृणा,र् ईष्याशक। जिनके स्वभाव में ये प्रवृत्ति पायी जाएँहोल्ली उनके लिए अमृत है। यह उनके केवल रोग को ही नहींबल्कि उनके मन से घृणा,र् ईष्या और शक को भी दूर करती है।
16.                         हनीसकुल (Honeysuckle):   सदा बीते यादों में खोए रहना। इस औषधि के विषय में डाँ. एडवर्ड बाक का निष्कर्ष उन्हीं के शब्दों में :
'' यह औषधि पिछले पश्चातापों और दुखों को मन से मिटाकर,बीते जीवन के प्रभावचाहतें और इच्छाओं को समाप्त कर हमें वर्तमान में लाने के लिए हैं। ''
17.                         हार्नबीम (Hornbeam) :     मानसिक एवं शारीरिक थकान। यह थकान मानसिक अधिक और वास्तविक (शारीरिक) कम होती है। अर्थात शारीरिक थकान मानसिक थकान के कारण महसूस होती है। ऐसी स्थिति में हार्नबीम मानसिक और शारीरिक शक्ति प्रदान करती हैं।
18.                         इम्पेशेंस (Impatiens) :     अधीरता,चिड़चिड़ापनचरम मानसिक तनाव। ये लोग बहुत ही बुद्धिमानतत्काल निर्णय लेने वालेजल्दी-जल्दी काम करने वाले होते हैं। यदि आप अपनी बात धीरे-धीरे कह रहे हों तो आपके वाक्य को वे खुद पूरा कर देते हैंकोई चीज देने में जरा भी विलम्ब हो तो वे उसे आपके हाथ से झपट लेते हैं अर्थात् जरा भी विलम्ब उनके लिए बर्दाश्त से बाहर हो जाता है और उनमें चरम मानसिक तनाव पैदा करता है। ऐसे लोगों की औषधि हैं : 'इम्पेशेंस'
अगले अंक में पुनः आगे की नौ औषधियों पर चर्चा की जाएगी।
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Sunday, February 13, 2011

बाक फ्लावर चिकित्सा पद्धति

                      अंक - 2
               - आचार्य परशुराम राय 
1.      एग्रीमोनी (Agrimony) : मानसिक त्रास, दूसरों से अपनी पीड़ा छिपाना। अर्थात् जब रोगी अपनी पीड़ा दूसरों से छिपाकर अपने को हँसमुख एवं खुश दिखाने का प्रयत्न करता हो तो ऐसी मानसिकता वाले व्यक्ति के लिए यह औषधिक उपयुक्त है।
2.    आस्पेन (Aspen) : भय जिसके कारणों की ओर-छोर का पता न हो। फिर भी रोगी हमेशा भयभीत रहता हो। 
3.    बीच (Beach) : असहिष्णुता, हमेशा हर जगह व्यवस्था और अनुशासन बनाए रखने के लिए परेशान रहना। रोगी जब दूसरों की कठिनाइयों का अनुभव न कर और उनकी अच्छाइयों को न देखकर केवल गलतियों की ओर दृष्टि रखता हो तो यह दवा उसके लिए उपयोगी होगी।
4.   सेन्टौरी (Centaury): कमजोर इच्छा शक्ति। तुरन्त दूसरों के प्रभाव में आ जाना। जो लोग शांत और डरपोक हैं तथा जल्दी ही दूसरों से प्रभावित हो जाते हैं, दूसरे शब्दों में जो सदा बेगारी करने में लगे रहते हैं, उनकी दवा है - सेन्टौरी।
5.   सिराटो (Cerato) : यह उन लोगों की दवा है जिनके पास बुद्धि है, अन्तर्बोध है, जिनके अपने निश्चित विचार हैं, फिर भी उन्हें अपनी क्षमता पर संदेह बना रहता है और प्राय: वे मूर्खतापूर्ण काम करते रहते हैं। प्राय: एक से, दूसरे से, तीसरे से राय और मशविरा माँगते रहते हैं। ऐसी मानसिकता वाले लोगों पर यह दवा बहुत अच्छा काम करती है।
6.   चेरी प्लस (Cherry Plus): मानसिक नियंत्रण खोने का भय। घोर निराशा। स्नाययिक विकार के कारण घोर निराशा और उससे बचने के लिए आत्महत्या करने की चाह/प्रवृत्ति रखने वाले व्यक्तियों के लिए यह काफी उपयोगी औषधि है। 
7.  चेस्टनट बड (Chestnut Bud) : एक ही गलती बार-बार करना, ध्यान का अभाव, पिछली गलती से कुछ भी न सीखना। जिन लोगों में यह प्रवृत्ति हो उन्हें इस दवा से लाभ होगा।
8.   चिकोरी (Chicory)आत्मानुरक्ति, स्वार्थी, अपने प्रति सहानुभूति की चाह, लोगों को अपने प्रति ध्यान आकृष्ट करने की प्रवृत्ति, दूसरों का ध्यान आकृष्ट करने तथा सहानुभूति पाने के लिए बीमारी का बहाना करना आदि चिकोरी की आवश्यकता है।
9.   क्लेमाटिस (Clematis): उदासीनता, दिवास्वप्न देखना, असावधान। जिन लोगों की ऐसी मानसिकता हो, उनके रोगों के लिए क्लेमाटिस उपयुक्त औषधि है।

   अगले अंक में आगे की नौ औषधियों पर चर्चा की जाएगी।
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Sunday, February 6, 2011

बाक फ्लावर चिकित्सा पद्धति


- आचार्य परशुराम राय
(यह रचना आर्डनैन्स फैक्टरी प्रोजेक्ट, मेदक (आन्ध्र प्रदेश) की वार्षिक गृह पत्रिका 'सारथ' वर्ष 2000 से आभार सहित यहाँ दी जा रही है।)
मनुष्य की समस्याएँ ही उसे अपने समाधान का रास्ता बताती हैं। यह कहावत प्रत्येक क्षेत्र में चरितार्थ होती है। चिकित्सा का क्षेत्र भी इसका अपवाद नहीं है। अब मानव जाति जबकि 21वीं शताब्दी में कदम रखने जा रही है, उसके पास अनेक चिकित्सा पद्धतियाँ हैं। इसमें दो राय नहीं कि हर चिकित्सा पद्धति की अपनी सीमा है, भले ही तुलनात्मक दृष्टि से उनके गुणात्मक प्रभाव कम या अधिक हों। इन चिकित्सा पद्धतियों का विकास विभिन्न भौगोलिक एवं सामाजिक परिस्थितियों में हुआ है। कुछ चिकित्सा पद्धतियाँ अपनी प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों की कमियों को पूरा करने के लिए अस्तित्व में आयीं। इनमें होम्योपैथी एवं बाक फ्लावर चिकित्सा पद्धतियाँ उल्लेखनीय हैं। चूँकि इस रचना का उद्देश्य बाक फ्लावर चिकित्सा पद्धति पर चर्चा करना है, इसलिए अन्य चिकित्सा पद्धतियों को छोड़ रहा हूँ।
      इस चिकित्सा पद्धति पर चर्चा करने के पहले इसके अन्वेषक के विषय में जानकारी देना उचित होगा। इस चिकित्सा पद्धति की खोज डॉ एडवर्ड बाक ने की। डाँ. बाक ने यूनिवर्सिटी कालेज हास्पिटल, लंदन से एम.बी.बी.एस., एम.आर.सी.एम., एल.आर.सी.पी. की डिग्रियाँ प्राप्त कीं। पहले उक्त संस्थान में ये आपात चिकित्साधिकारी रहे, तत्पश्चात् जीवाणु विज्ञानी। इसके बाद इन्होंने होम्योपैथी का अध्ययन और प्रैक्टिस शुरू किया। समान लक्षण वाली औषधि चुनने की कठिनाई के कारण उन्हें यह चिकित्सा पद्धति भी बहुत दिनों तक रास न आयी और वे इससे विरक्त हो गए। उनके मन में यह बात उठी कि आखिर ईश्वर हम लोगों को इतना प्यार करता है, फिर वह हमें इतनी बीमारियाँ क्यों देता है। उन्होंने सोचा कि यदि प्रकृति सदा पूर्णता की ओर गतिशील रहती है तो उसके साम्राज्य में कुछ चिकित्सा के ऐसे साधन अवश्य होने चाहिए जो सरल और साथ ही असरदार भी हों। इतना सरल कि रोगी बिना विस्तृत चिकित्सा विज्ञान की जानकारी के भी स्वयं अपने लिए दवा ढूँढ सके। इसी सोच के लिए डाँ एडवर्ड बाक 1930 में प्रकृति के साम्राज्य में सरल चिकित्सा पद्धति की खोज में निकल पड़े। वे छ: वर्षों तक इंगलैण्ड के जंगलों में भटकते रहे। अन्त में 1936 में उनकी भटकन समाप्त हुई और जंगल मंथन के बाद अमृत के रूप में 38 पुष्प औषधियों को लेकर बाहर आए। ये औषधियाँ उनकी सोच की कसौटी पर खरी उतरीं। अर्थात् न तो इसमें होमियोपैथी की समान लक्षण वाली औषधियों के चुनाव की जटिलता है और न ही एलौपैथिक चिकित्सा पद्धति की पैथालाजिक जाँच-पड़ताल की जरूरत और न ही आयुर्वेद के नाड़ी ज्ञान की। ये दवाएँ रोगी के मानसिक लक्षणों के आधार पर दी जाती हैं। इन दवाओं के प्रयोग के लिए बीमारी कोई मायने नहीं रखती। केवल उसके मानसिक लक्षण ही काम के हैं। जैसे, एक कैंसर के रोगी का मानसिक लक्षण एग्रीमोनी का है तो उसे एग्रीमोनी दी जाएगी, यदि आस्पेन का है तो आस्पेन। कभी-कभी आवश्यकता पड़ने पर रोगी की मानसिक अवस्था एवं रोग के प्रति मानसिक प्रतिक्रिया तथा रोगी की प्रकृति के आधार पर दो-दो या तीन-तीन दवाएँ एक साथ दी जा सकती हैं यदि गलती से कोई अनपेक्षित दवा रोगी को दे दी जाए तो उसका उसके शरीर पर कोई गलत प्रभाव नहीं पड़ता है। इसके अतिरिक्त इन दवाओं का प्रयोग अन्य चिकित्सा पद्धति की दवाओं के साथ भी बेहिचक किया जा सकता है। ये न तो दूसरी दवाओं के कार्य में दखल देती हैं और न ही अन्य दवाएँ इनकी क्रिया को प्रभावित करती हैं। बाक फ्लावर दवाओं का प्रभाव रोगी पर बड़े असरदार ढंग से जल्दी होता है। ये होमियोपैथिक दवाओं की तरह रोग को बढ़ाती भी नहीं। ये दवाएँ बच्चे, बूढ़े, स्त्री, पुरूष हर प्रकार के लोगों को प्रत्येक अवस्था में दी जा सकती हैं। यदि दवा का चुनाव रोगी के मानसिक लक्षणों के अनुरूप किया जाए तो कभी निराश नहीं होना पड़ेगा।
      वैसे 'बाक फ्लावर रेमिडिज' चिकित्सा पद्धति अधिक प्रचलित नहीं है और बहुत कम लोग इस चिकित्सा पद्धति से परिचित हैं। भारत में अभी तक इन दवाओं को ड्रग ऐक्ट के अन्तर्गत शामिल नहीं किया गया है। लेकिन इससे इन दवाओं की गुणवत्ता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
      इनमें से कुछ दवाओं के विषय में अपने कुछ अनुभव बताना चाहूँगा। आर्डनेंस फैक्टरी मेदक, आं.प्र. के एक कर्मचारी पर इसका प्रयोग करने का मौका मिला। उसे पित्ती निकलती थी। काफी चिकित्सा कराने के बाद भी जब उसे इस रोग से मुक्ति न मिली तो वह मेरे पास इसके लिए होमियोपैथिक दवाओं के बारे में सलाह लेने आया था। लक्षण के अनुसार उसे होमियोपैथिक दवा दी गयी। इससे पित्तियों का निकलना कम तो हो गया लेकिन उसकी मानसिक परेशानी, जो पहले से ही थी, बढ़ गयी। मानसिक लक्षण के अधार पर उसे 'हनीसकुल' (फ्लावर रेमिडी) दी गयी और 15 दिनों में वह मानसिक परेशानी से मुक्त हो गया। जब अन्तिम बार मुझसे मिला तो देखा कि उसका हमेशा बुझा रहने वाला चेहरा काफी प्रफुल्लित था।
      जब मैं 'एग्रीमोनी' (फ्लावर रेमिडी) के बारे में पढ़ रहा था तो अपने एक अधिकारी मित्र का नाम तुरन्त मेरे मन में आया। मैंने उन्हें उक्त औषधि के लक्षणों के बारे में बताया। वे खुद भी उन लक्षणों की परीक्षा करके मेरे निर्णय से सहमत हो गये। उन्हें उच्च रक्त चाप (हाई ब्लड प्रेसर) एवं उससे उत्पन्न सिर दर्द तथा अनिद्रा की शिकायत थी। ब्लड प्रेशर की दवा लेने के बाद भी उनका रक्त चाप 140/110 से 130/90 के बीच रहता था। सिर दर्द के लिए डिस्पिरिन एवं नींद के लिए कम्पोज उन्हें लगभग रोज लेना पड़ता था। इसके अतिरिक्त, मानसिक तनाव आदि रहता था। एक हफ्ते तक एग्रीमोनी लेने के बाद उनसे मिला और पूछा कि वे कैसा अनुभव कर रहे हैं। उनकी पहली प्रतिक्रिया उन्हीं के शब्दों में क्षमा-याचना के साथ दे रहा हूँ - 'बहुत अच्छा है। दो-तीन दिनों से बच्चों को पीटा नहीं।' इसके बाद उन्होंने बताया कि बिना कम्पोज के अच्छी नींद आ रही है। सिरदर्द भूल चुके हैं। मन सदा प्रसन्न रहता है। क्रोध बिल्कुल आना बंद हो गया। उस दिन उनका रक्तचाप 120/80 था।
      इसके अतिरिक्त इन औषधियों के कई अनुभव किए। विस्तार के भय से उनका यहाँ उल्लेख नहीं कर रहा हूँ।
डॉ बाक द्वारा आविष्कृत फ्लावर रेमिडिज के नाम नीचे दिए जा रहे है:
एग्रीमोनी, आस्पेन, बीच, सेन्टौरी, सिराटो, चेरी प्लस, चेस्टनट बड, चिकोरी, क्लेमाटिस, क्रैब एपल, एल्म, जेन्शियन, गॉर्स, हीदर, होल्ली, हनीसकु, हार्नबीम, इम्पेशेंस, लार्च, मिम्युलस, मस्टर्ड, ओक, ओलिव, पाइन, रेड चेस्टनट, राक रोज, राक वाटर, स्क्लेरान्थस, स्टार आफ बेथलहम, स्वीट चेस्टनेट, वरवेन, वाइन, वालनट, वाटर वायलेट, व्हाइट चेस्टनट, वाइल्ड ओट, वाइल्ड रोज और विल्लो।
      अगले अंक में प्रथम नौ औषधियों के संक्षिप्त विवरण दिए जाएँगे।
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