Friday, January 31, 2014

Oh Lord, where is that wonderland?








Days are gone, when there were human breathing all around!

Humanity is gone
So is the beauty of nature!
All I find today
Is city on fire – humanity on pyre!

Life is gone
So is the liveliness!
All I find today
Are robots with sheep and goats!

Emotion is gone
So is the meaning of love!
All I find today
Is physical lust and dying trust!

Sacrifice is gone
So is the social bonding!
All I find today
Are selfish relatives and cruel motives!
Oh Lord!
I still wonder if this is all you have
Or still you hold some secret boons
Before, I am laid to grave!
If this is the end of all
Then I wish to recreate
a land of harmony, peace and love,
Where I wish to meet you again!
Among people with love
And smiling with no pain!

Oh Lord,
Grant me strength
To bring our wonderland back,
Where children trek in fairyland!
Where love is passion not lust!
Where prevails the bonding of selflessness
And life blooms with happiness!!!

~Pratima Rai

Sunday, April 28, 2013

जाने कैसे






जाने कैसे यहाँ लोग बदल जाते हैं,
अपने ठगते हैं अपनों को,
हर एक पल यहाँ रिश्ते बदलते हैं,
जाने कैसे यहाँ लोग बदल जाते हैं।

कसमें खाते हैं,
उसूलों वाले ये बनते हैं,
बात हो निभाने की,
तो इनके नियत बदल जाते हैं,
जाने कैसे यहाँ लोग बदल जाते हैं ।

करते हैं बातें ये इंसानियत की,
लेकिन वक़्त आने पर,
ये अपना खुदा भी बदल जाते हैं,
जाने कैसे यहाँ लोग बदल जाते हैं।
  
~ प्रतिमा राय 

Monday, September 26, 2011

मेरिडियन चिकित्सा विज्ञान (Meridianology)

                                                                         (अंक-3)
       -    आचार्य परशुराम राय


पिछले दो अंकों में मेरिडियन चिकित्सा विज्ञान की दार्शनिक पृष्ठभूमि पर चर्चा की गयी और उसकी 12 मुख्य धाराओं के नामों का उल्लेख किया गया था, जिनपर आने वाले बिन्दुओं का इस चिकित्सा पद्धति में प्रयोग किया जाता है। इस अंक में दो धाराओं- फुफ्फुस धारा (lung channel) और बड़ी आँत धारा (large intestine channel) पर चर्चा करेंगे।
फुफ्फुस धारा (Lung Channel) यिन (ऋणात्मक) धारा है और इसकी युगलबन्दी बड़ी आँत की धारा (Large Intestine Channel) से है। यह धारा दोनों ओर छाती के ऊपरी भाग से नीचे की ओर प्रवाहित होती हुई दोनों हाथों के अंगूठों के बाहरी कोनों तक जाती है। इसमें कुल 11 बिन्दु होते हैं। इस धारा का प्रवाहकाल प्रातः 3 बजे से 5 बजे तक होती है। इसकी दिशा केन्द्रापसारी (Centrifugal) है। इसका तत्त्व धातु  है। सामान्यतया उपचार में बिन्दु संख्या 1, 5, 6, 7, 9 और 11 प्रयोग में लाए जाते हैं। इस धारा के बिन्दुओं का उपयोग श्वास-प्रश्वास, चर्म, गरदन, बड़ी आँत और नलिका सम्बन्धी रोगों में किया जाता है। इस धारा के प्रवाह और उसके 11 बिन्दुओं को नीचे चित्र में दिखाया गया है| चित्र को ठीक से देखने के लिए चित्र पर CLICK करें -
 
   "चित्र Dr.Anton Jayasuriya की पुस्तक Clinical Acupuncture से साभार लिया गया है।"
 
बड़ी आँत धारा (Large Intestine Channel) फुफ्फुस धारा की युगल यंग (धनात्मक) धारा है, जो दोनों हाथों की तर्जनी उँगली के नाखून की जड़ से प्रारम्भ होकर हाथों के बाहरी हिस्से से होती हुई  गरदन तक जाती है और पुनः नासिका पुटों के दोनों ओर तक जाती है। शरीर के दोनों ओर से आनेवाली धाराएँ ऊपरी ओठ के ऊपर एक दूसरे को स्पर्श करती हैं। इसका तत्त्व भी धातु है और यह धारा केन्द्राभिमुखी है। इसपर कुल 20 बिन्दु हैं, लेकिन उपचार में प्रायः बिन्दु संख्या 4, 10, 11, 14, 18, 19 और 20 उपयोग में लाए जाते हैं। इसका प्रवाहकाल प्रातः 5 बजे से 7 बजे तक है।
इस धारा के बिन्दुओं पर मालिस कर या दबाव देकर अथवा सूई से छेदकर उपचार किया जाता है। चर्म रोग, दर्द, ऊपरी अंगों के पक्षाघात, कंधे की जकड़न, श्वास रोग, उच्च रक्तचाप और थाइरायड ग्रंथि की शल्य चिकित्सा के उत्पन्न तकलीफों की चिकित्सा में इन बिन्दुओं का उपयोग होता है। इस धारा और इसके बिन्दुओं को नीचे के चित्र की सहायता से समझा जा सकता है| चित्र को ठीक से देखने के लिए चित्र पर CLICK करें- 
 "चित्र Dr.Anton Jayasuriya की पुस्तक Clinical Acupuncture से साभार लिया गया है।"













 

Sunday, September 11, 2011

मेरिडियन चिकित्सा विज्ञान – 2


अंक-2

-    आचार्य परशुराम राय

         पिछले अंक में मेरिडियन चिकित्सा पद्धति की दार्शनिक पृष्ठ-भूमि पर चर्चा की गयी थी। इस अंक में इसके दार्शनिक पृष्ठ-भूमि की शेष बातों पर विचार करते हुए शरीर में मेरिडियन धाराओं के नामों का उल्लेख अभीष्ट है।
        
  पिछले अंक में इस चिकित्सा पद्धति के दार्शनिक परिचय के क्रम में पंचतत्त्व के सिद्धांत का उल्लेख आवश्यक है। चीनी दर्शन ब्रह्माण्ड के सम्पूर्ण दृश्य प्रपंच या घटनाक्रम को पाँच तत्त्वों में विभक्त करता है- काष्ठ, अग्नि, पृथ्वी, धातु और जल। इनके दो क्रमिक चक्र- सृजन और विनाश माने गये हैं। सृजन चक्र में आग से जलकर लकड़ी राख में परिवर्तित होकर पृथ्वी तत्त्व को जन्म देती है। पृथ्वी तत्त्व से धातु का जन्म होता है और धातु से जल निकलता है। जल पेड़ों को सींचकर लकड़ी बनाता है। विनाश चक्र में अग्नि धातु को पिघलाता है, धातु लकड़ी को काटती है, लकड़ी पृथ्वी को ढक लेती है और पृथ्वी पानी को सोख लेती है। प्रोफेसर जोसफ नीडम इन्हें क्रमशः ठोसपन, दाहकता, उत्पादकता, गलनीयता और तरलता को इनके गुण के रूप में देखते हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि इन पाँचो तत्त्वों की स्वतंत्र सत्ता होते हुए भी ये एक-दूसरे से संचालित होते हैं या अपने अस्तित्व के लिए एक दूसरे पर आश्रित हैं। पारम्परिक चीनी चिकित्सा पद्धति में ब्रह्माण्ड के दृश्य घटनाक्रम को इन पाँच तत्त्वों को निम्नलिखित रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है-
 

तत्त्व
दिशा
ऋतु
मौसम के अनुसार विकार
रंग
स्वाद
काष्ठ
पूर्व
वसन्त
वात
हरा
खट्टा
अग्नि
दक्षिण
ग्रीष्म
ऊष्मा
लाल
कटु (कड़वा)
पृथ्वी
मध्य
वर्षा
आर्द्रता
पीला
मीठा
धातु
पश्चिम
शरत्
खुश्की
श्वेत
अम्लीय
जल
उत्तर
शीत
ठंड
काला
लवणीय (नमकीन)
  

     
  मेरिडियन चिकित्सा पद्धति ची (Chi) प्राण सम्पूर्ण जैविक प्रक्रिया का कारक है, जीवनी शक्ति है तथा यिन (Yin) और यंग (Yang) इसी की अभिव्यक्ति हैं। जन्म के समय यह प्राण हमारे शरीर में प्रवेश करता है और मृत्यु के समय इसे छोड़ देता है। यह प्राण एक व्यक्ति के शरीर में जीवन भर लगातार विशेष सुनिश्चित और व्यवस्थित मार्गों से धाराओं के रूप में प्रवाहमान रहता है जिसे हम मानव शरीर का मेरिडियन कहते हैं। अपनी प्रवाहित दिशा के अनुसार इन्हें यिन (ऋणात्मक) और यंग (धनात्मक) धाराओं के नाम से जाता है।
     
 शारीरिक मेरिडियन की अनंत धाराएँ हमारे शरीर में अनवरत रूप से प्रवाहित होती रहती हैं। इन धाराओं को चार भागों में विभक्त किया गया है- पृष्ठीय, मध्यवर्ती, अपसारी (Divergent) और आन्तरिक। यहाँ केवल पृष्ठीय (Superficial) धाराओं और उनके मुख्य विन्दुओं पर चर्चा की जाएगी जिनका चिकित्सा के क्षेत्र में सर्वाधिक प्रयोग होता है। इनकी कुल संख्या 12 है और इन्हें अंगों के नाम से जानते हैं। इनकी प्रकृति के अनुसार इन्हें युगल-बंद किया गया है-
  फुफ्फुस धारा (Lung Channel)  और  बड़ी आँत धारा (Large Intestine Channel)
    अमाशय धारा (Stomach Channel) और प्लीहा धारा (Spleen Channel)
    हृदय धारा (Heart Channel) और छोटी आँत धारा (Small Intestine Channel)
  मूत्राशय धारा (Urinary Bladder Channel) और वृक्क धारा (Kidney Channel)
   हृदय-आवरण धारा (Pericardium Channel) और सन्जिआओ या ट्रिपुल वार्मर धारा (Sanjiao or Triple  Warmer Channel)

अगले अंक से इनमें से दो-दो धाराओं और चिकित्सा में प्रयुक्त होने वाले बिन्दुओं पर चर्चा की जाएगी।
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