अंक-2
- आचार्य परशुराम राय
पिछले अंक में मेरिडियन चिकित्सा पद्धति की दार्शनिक पृष्ठ-भूमि पर चर्चा की गयी थी। इस अंक में इसके दार्शनिक पृष्ठ-भूमि की शेष बातों पर विचार करते हुए शरीर में मेरिडियन धाराओं के नामों का उल्लेख अभीष्ट है।
पिछले अंक में इस चिकित्सा पद्धति के दार्शनिक परिचय के क्रम में पंचतत्त्व के सिद्धांत का उल्लेख आवश्यक है। चीनी दर्शन ब्रह्माण्ड के सम्पूर्ण दृश्य प्रपंच या घटनाक्रम को पाँच तत्त्वों में विभक्त करता है- काष्ठ, अग्नि, पृथ्वी, धातु और जल। इनके दो क्रमिक चक्र- सृजन और विनाश माने गये हैं। सृजन चक्र में आग से जलकर लकड़ी राख में परिवर्तित होकर पृथ्वी तत्त्व को जन्म देती है। पृथ्वी तत्त्व से धातु का जन्म होता है और धातु से जल निकलता है। जल पेड़ों को सींचकर लकड़ी बनाता है। विनाश चक्र में अग्नि धातु को पिघलाता है, धातु लकड़ी को काटती है, लकड़ी पृथ्वी को ढक लेती है और पृथ्वी पानी को सोख लेती है। प्रोफेसर जोसफ नीडम इन्हें क्रमशः ठोसपन, दाहकता, उत्पादकता, गलनीयता और तरलता को इनके गुण के रूप में देखते हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि इन पाँचो तत्त्वों की स्वतंत्र सत्ता होते हुए भी ये एक-दूसरे से संचालित होते हैं या अपने अस्तित्व के लिए एक दूसरे पर आश्रित हैं। पारम्परिक चीनी चिकित्सा पद्धति में ब्रह्माण्ड के दृश्य घटनाक्रम को इन पाँच तत्त्वों को निम्नलिखित रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है-
तत्त्व | दिशा | ऋतु | मौसम के अनुसार विकार | रंग | स्वाद |
काष्ठ | पूर्व | वसन्त | वात | हरा | खट्टा |
अग्नि | दक्षिण | ग्रीष्म | ऊष्मा | लाल | कटु (कड़वा) |
पृथ्वी | मध्य | वर्षा | आर्द्रता | पीला | मीठा |
धातु | पश्चिम | शरत् | खुश्की | श्वेत | अम्लीय |
जल | उत्तर | शीत | ठंड | काला | लवणीय (नमकीन) |
मेरिडियन चिकित्सा पद्धति ची (Chi) प्राण सम्पूर्ण जैविक प्रक्रिया का कारक है, जीवनी शक्ति है तथा यिन (Yin) और यंग (Yang) इसी की अभिव्यक्ति हैं। जन्म के समय यह प्राण हमारे शरीर में प्रवेश करता है और मृत्यु के समय इसे छोड़ देता है। यह प्राण एक व्यक्ति के शरीर में जीवन भर लगातार विशेष सुनिश्चित और व्यवस्थित मार्गों से धाराओं के रूप में प्रवाहमान रहता है जिसे हम मानव शरीर का मेरिडियन कहते हैं। अपनी प्रवाहित दिशा के अनुसार इन्हें यिन (ऋणात्मक) और यंग (धनात्मक) धाराओं के नाम से जाता है।
शारीरिक मेरिडियन की अनंत धाराएँ हमारे शरीर में अनवरत रूप से प्रवाहित होती रहती हैं। इन धाराओं को चार भागों में विभक्त किया गया है- पृष्ठीय, मध्यवर्ती, अपसारी (Divergent) और आन्तरिक। यहाँ केवल पृष्ठीय (Superficial) धाराओं और उनके मुख्य विन्दुओं पर चर्चा की जाएगी जिनका चिकित्सा के क्षेत्र में सर्वाधिक प्रयोग होता है। इनकी कुल संख्या 12 है और इन्हें अंगों के नाम से जानते हैं। इनकी प्रकृति के अनुसार इन्हें युगल-बंद किया गया है-
फुफ्फुस धारा (Lung Channel) और बड़ी आँत धारा (Large Intestine Channel)
अमाशय धारा (Stomach Channel) और प्लीहा धारा (Spleen Channel)
हृदय धारा (Heart Channel) और छोटी आँत धारा (Small Intestine Channel)
मूत्राशय धारा (Urinary Bladder Channel) और वृक्क धारा (Kidney Channel)
हृदय-आवरण धारा (Pericardium Channel) और सन्जिआओ या ट्रिपुल वार्मर धारा (Sanjiao or Triple Warmer Channel)
अगले अंक से इनमें से दो-दो धाराओं और चिकित्सा में प्रयुक्त होने वाले बिन्दुओं पर चर्चा की जाएगी।
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AAcharya Ji aap ka aabhar...umeed hai pathak is chikitsa vigyaan ke har ank se zaroor kuch seekhenge.
ReplyDeleteइस ज्ञानवर्धक श्रृंखला का लाभ हम भी उठा रहे हैं।
ReplyDeleteप्रतिमा जी,
ReplyDeleteमेरिडियन चिकित्सा पद्धति पर लिखे निबंध को अपने ब्लॉग पर प्रकाशित करने के लिए आभार। दूसरे पैराग्राफ के टेबुल के दो स्तंभ रंग और स्वाद अन्य स्तंभों में मिल गए हैं। उन्हें अलग कर देने से समझने में सुविधा होगी, अन्यथा वे दूसरों के साथ मिलकर संदेह पैदा कर रहे हैं।
कल 14/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
but achchi gyaanwerdhak post .sabke liye phayademand bahut badhaai aapko.
ReplyDeleteplease visit my blog
www.prernaargal.blogspot.com
Yashwant ji: aapka bahut aabhaar. :)
ReplyDeletePrerna ji: saadhuwad... :)
ReplyDeleteअच्छी ज्ञानवर्धक जानकारी मिलती है आपके ब्लॉग पर.
ReplyDeleteविषय का सूक्षमता से विश्लेषण किया है आपने.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर भी आईयेगा.
Rakesh ji: bahut abhaar aapka.aur is post ke liye main aacharya ji ki aabhari hun. :)
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