(अंक-3)
- आचार्य परशुराम राय
पिछले दो अंकों में मेरिडियन चिकित्सा विज्ञान की दार्शनिक पृष्ठभूमि पर चर्चा की गयी और उसकी 12 मुख्य धाराओं के नामों का उल्लेख किया गया था, जिनपर आने वाले बिन्दुओं का इस चिकित्सा पद्धति में प्रयोग किया जाता है। इस अंक में दो धाराओं- फुफ्फुस धारा (lung channel) और बड़ी आँत धारा (large intestine channel) पर चर्चा करेंगे।
फुफ्फुस धारा (Lung Channel) यिन (ऋणात्मक) धारा है और इसकी युगलबन्दी बड़ी आँत की धारा (Large Intestine Channel) से है। यह धारा दोनों ओर छाती के ऊपरी भाग से नीचे की ओर प्रवाहित होती हुई दोनों हाथों के अंगूठों के बाहरी कोनों तक जाती है। इसमें कुल 11 बिन्दु होते हैं। इस धारा का प्रवाहकाल प्रातः 3 बजे से 5 बजे तक होती है। इसकी दिशा केन्द्रापसारी (Centrifugal) है। इसका तत्त्व धातु है। सामान्यतया उपचार में बिन्दु संख्या 1, 5, 6, 7, 9 और 11 प्रयोग में लाए जाते हैं। इस धारा के बिन्दुओं का उपयोग श्वास-प्रश्वास, चर्म, गरदन, बड़ी आँत और नलिका सम्बन्धी रोगों में किया जाता है। इस धारा के प्रवाह और उसके 11 बिन्दुओं को नीचे चित्र में दिखाया गया है| चित्र को ठीक से देखने के लिए चित्र पर CLICK करें -
"चित्र Dr.Anton Jayasuriya की पुस्तक Clinical Acupuncture से साभार लिया गया है।"
बड़ी आँत धारा (Large Intestine Channel) फुफ्फुस धारा की युगल यंग (धनात्मक) धारा है, जो दोनों हाथों की तर्जनी उँगली के नाखून की जड़ से प्रारम्भ होकर हाथों के बाहरी हिस्से से होती हुई गरदन तक जाती है और पुनः नासिका पुटों के दोनों ओर तक जाती है। शरीर के दोनों ओर से आनेवाली धाराएँ ऊपरी ओठ के ऊपर एक दूसरे को स्पर्श करती हैं। इसका तत्त्व भी धातु है और यह धारा केन्द्राभिमुखी है। इसपर कुल 20 बिन्दु हैं, लेकिन उपचार में प्रायः बिन्दु संख्या 4, 10, 11, 14, 18, 19 और 20 उपयोग में लाए जाते हैं। इसका प्रवाहकाल प्रातः 5 बजे से 7 बजे तक है।
इस धारा के बिन्दुओं पर मालिस कर या दबाव देकर अथवा सूई से छेदकर उपचार किया जाता है। चर्म रोग, दर्द, ऊपरी अंगों के पक्षाघात, कंधे की जकड़न, श्वास रोग, उच्च रक्तचाप और थाइरायड ग्रंथि की शल्य चिकित्सा के उत्पन्न तकलीफों की चिकित्सा में इन बिन्दुओं का उपयोग होता है। इस धारा और इसके बिन्दुओं को नीचे के चित्र की सहायता से समझा जा सकता है| चित्र को ठीक से देखने के लिए चित्र पर CLICK करें-
"चित्र Dr.Anton Jayasuriya की पुस्तक Clinical Acupuncture से साभार लिया गया है।"